शहर में पसरा सन्नाटा कुछ कह रहा है
लेकिन उनके पास वक्त नहीं
दरअसल वो देशहित चिंतक हैं
उनके अपने विचार और आदर्श हैं
वे विमर्श करेंगे वर्तमान हालात पर
प्रकाश डालेंगे कूटनीति पर
वे राष्ट्रभक्त हैं और बुद्धिजीवी भी हैं
वे सिर्फ सवाल तय करते हैं
अधिकार है उनका, देश खतरे में है
विरोध के स्वर उन्हें पसंद नहीं है
क्योंकि विरोधी वामपंथी होते हैं
दीवारों पर लाल निशान हैं
शायद देश विरोधी ताकतों ने बनाए हैं
गलियों में बिखरी चप्पलें ताक रही हैं
वो भी कुछ कह रही हैं
उन्हें पता है, दुश्मनों की हैं
उनके विमर्श का विषय तय हो चुका है|
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