जल
जंगल जमीन ने कब कहा
नदियों
में बहेगी खून की धार
जल
जंगल जमीन ने कब कहा
हरियाली
पहनेगी खूनी हार
जंगल से पूछा है तुमने
अमन
चाहिए या चित्कार
नदियों
से पूछा है तुमने
जल
चाहिए या रुधिर धार
किसने दी आवाज तुमको
कब
लगाई है गुहार
देकर
वास्ता भलाई का
कर
रहे हो अत्याचार
जंगल की चाहत है मंगल
देता
है सबको अमृतफल
इधर
महीधर , उधर पयोधर
उठा
रहे रखवाली का भार
निर्मल जल धारा की कल-कल
लता-बेल
,तरूवर की हलचल
छलकता
इनसे हर पल प्यार
नहीं
मांगते ये संहार
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