इस अंधेरी बस्ती में,
उम्मीद
की लौ जलती है|
टूटे हुए छप्पर में,
गरीबी सिसकती है|
लिहाफ के छेद में,
सपने हजार पलते हैं|
सूरज की ईष्या से,
पलभर में दरकते हैं |
दिन के उजाले में,
सन्नाटा पसर जाता है|
बस्ती की गलियों में,
भूख जो टहलती है|
अखबारों, इश्तिहारो में,
विकास की बाते हैं|
कोई तो पता दे,
कहां उसकी बस्ती है?
टूटे हुए छप्पर में,
गरीबी सिसकती है|
लिहाफ के छेद में,
सपने हजार पलते हैं|
सूरज की ईष्या से,
पलभर में दरकते हैं |
दिन के उजाले में,
सन्नाटा पसर जाता है|
बस्ती की गलियों में,
भूख जो टहलती है|
अखबारों, इश्तिहारो में,
विकास की बाते हैं|
कोई तो पता दे,
कहां उसकी बस्ती है?
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